भूमिहार ब्राह्मणों का संक्षिप्त इतिहास
भूमिहार एक भारतीय जाति है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा थोड़ी संख्या में अन्य प्रदेशों में निवास करती है। भूमिहार का अर्थ होता है "भूमिपति" , "भूमिवाला" या भूमि से आहार अर्जित करने वाला (कृषक) । भूमिहार जाति के लोग को भूमिहार ब्राह्मण भी कहा जाता है।
पहले भूमिहार समाज को केवल ब्राह्मण के नाम से ही जाना जाता था लेकिन जब ब्राह्मणों के छोटे छोटे दल बनने लगे तब भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढने वाले त्रिकर्मी अयाचक ब्राह्मण दल (जैसे- मगध के बाभन, मिथिला के ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मण) को लेकर सन 1885 ई० में एक सभा बनारस में की गई। सभा के विचार विमर्श के उपरान्त इस त्रिकर्मी अयाचक ब्राह्मण समाज को एक नये नाम 'भूमिहार ब्राह्मण' से जाना जाने लगा।
चूंकि भूमिहारों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से है इसलिए 'भूमिहार ब्राह्मण' समाज में उपनाम उस अनुसार है जैसे :- पाण्डेय, तिवारी/त्रिपाठी, शर्मा, मिश्र, शुक्ल, उपाध्यय, ओझा, दुबे / द्विवेदी आदि। इसके अलावा रियासत और ज़मींदारी के कारण भूमिहार ब्राह्मण के एक बड़े भाग का उपनाम राय, साही, सिंह, भोक्ता, त्यागी, चौधरी, ठाकुर में हो गया।
बनारस राज्य भूमिहार ब्राह्म्णों के अधिपत्य में 1725 से 1947 तक रहा, इसके अलावा कुछ अन्य बड़े राज्य बेतिया, लालगोला, हथुवा, टिकारी, तमकुही इत्यादि भी भूमिहार ब्राह्मणों के अधिपत्य में रहे हैं।
भूमिहार ब्राह्मण कुछ जगह प्राचीन समय से पुरोहिताई करते चले आ रहे है जैसे कि प्रयाग की त्रिवेणी के सभी पंडे भूमिहार ही हैं। गया के विष्णुपद मंदिर और देव सूर्यमंदिर के पुजारी भूमिहार ब्राह्मण ही हैं।
भूमिहार 20 वीं शताब्दी तक पूर्वी भारत के एक प्रमुख भू-स्वामी समूह थे, और इस क्षेत्र में कुछ छोटी रियासतों और जमींदारी संपदाओं को नियंत्रित करते थे। भूमिहार समुदाय ने भारत के किसान आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 20 वीं शताब्दी में भूमिहार बिहार की राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली थे।
वर्ण स्थिति
भूमिहार जमींदारों और रियासतों के शासकों ने एक सामुदायिक नेटवर्क बनाने और ब्राह्मण स्थिति के लिए अपने दावों को आगे बढ़ाने के लिए जाति-आधारित संघों ( सभाओं ) की स्थापना की। प्रधान भूमिहार ब्राह्मण सभा ("भूमिहार ब्राह्मणों की मुख्य सभा") की स्थापना 1889 में पटना में हुई थी। इसका उद्देश्य "समुदाय के नैतिक, सामाजिक और शैक्षिक सुधारों में सुधार करना और सरकार के लिए समुदाय की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करना" था। भूमिहार ब्राह्मण महासभा ("महान सभा") की स्थापना 1896 में हुई थी।
भूमिहार ब्राह्मण महासभा ने वर्तमान उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न हिस्सों में वार्षिक सत्र आयोजित किए। इसके प्रमुख नेताओं में पटना की भूमिहार ब्राह्मण सभा के नेता सहजानंद सरस्वती थे। 1914 के बलिया सत्र के दौरान, सहजानंद ने भूमिहारों की ब्राह्मण स्थिति का बचाव किया, हिंदू ग्रंथों के उद्धरणों का उपयोग करते हुए तर्क दिया कि पुरोहित कार्य अकेले ब्राह्मणों को परिभाषित नहीं करते हैं। 1916 में, उन्होंने भूमिहार ब्राह्मण परिचय ("भूमिहार ब्राह्मणों का परिचय") नामक एक पुस्तक प्रकाशित की , जिसमें इन तर्कों को रेखांकित किया गया था। उन्होंने ब्राह्मणों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया - भीख ( यचक ) और गैर-भीख ( अयाचक ) - और कहा कि भूमिहार गैर-भीख मांगने वाले ब्राह्मणों में से थे।
राजनीतिक प्रभाव
भूमिहार ब्रिटिश दिनों से लेकर आजादी के बाद के भारत के पहले दशकों तक बिहार की राजनीति में प्रभावशाली थे। प्रसिद्ध भूमिहार रियासतों के शासकों में हरेंद्र किशोर सिंह ( बेतिया के राजा ) और विभूति नारायण सिंह ( बनारस के राजा ) शामिल थे।
भूमिहारों ने 1910 के दशक से किसान , वामपंथी और स्वतंत्रता आंदोलनों के आयोजन में भी अग्रणी भूमिका निभाई है। 1914 और 1916 में पिपरा और तुरकौलिया के भूमिहारों ने नील की खेती के खिलाफ विद्रोह कर दिया । जब महात्मा गांधी ने 1917 में मोतिहारी में नील की खेती के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया , तो कई भूमिहार बुद्धिजीवी विरोध में शामिल हो गए। इनमें श्री कृष्ण सिंह (या सिन्हा), राम दयालु सिंह, रामनंदन मिश्र, शीलभद्र याजी, कार्यानंद शर्मा और सहजानंद सरस्वती शामिल थे।
सहजानंद द्वारा जाति की राजनीति छोड़ने के बाद , गणेश दत्त भूमिहार महासभा के नेता के रूप में उभरे। बाद में उन्होंने बिहार विधान परिषद में प्रवेश किया और अपनी जाति के अन्य सदस्यों को संरक्षण प्रदान किया। इस संरक्षण को और बढ़ाया गया, जब श्री कृष्ण सिंह बिहार के प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्री बने । सहित कई प्रभावशाली भूमिहार नेताओं का उदय हुआ । सिंह ने निचली जातियों के कल्याण के लिए भी काम किया। वह जमींदारी प्रथा को समाप्त करने वाले भारत के पहले मुख्यमंत्री थे।
1961 में श्री कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद, भूमिहार राजनीतिक आधिपत्य धीरे-धीरे कम हो गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राज्य इकाई में भूमिहार नेताओं की एक छोटी संख्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 1990 के बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की चुनावी हार के बाद बिहार की राजनीति में भूमिहार का प्रभाव काफी कम हो गया ।
चूंकि चुनावी राजनीति में उनकी शक्ति में गिरावट आई, कई भूमिहार 1994 में स्थापित एक निजी मिलिशिया रणवीर सेना की ओर आकर्षित हुए । इस समूह ने क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ सशस्त्र अभियान चलाए हैं , और उनके खिलाफ अत्याचार में शामिल रहे हैं।
अन्य क्षेत्रों में प्रभाव
ब्रिटिश भारत के प्रारंभिक साक्षर समूहों में से एक होने के नाते, भूमिहार समुदाय ने कई प्रमुख साहित्यकारों का निर्माण किया। इनमें रामधारी सिंह दिनकर , राहुल सांकृत्यायन , रामबृक्ष बेनीपुरी और गोपाल सिंह नेपाली शामिल हैं ।
भूमिहार ब्राह्मणों में कुछ महत्वपूर्ण गोत्र तथा किस्म हैं:
1. गौतम - पिपरामिश्र, गोतामीया, दात्त्यायण, वात्सयायन, करमैसुरौरे, बद्रामिया.
2. शांडिल्य - दिघ्वैत, कुसुमतिवारी, कोरांच, नैन्जोरा, रामियापाण्डेय, चिकसौरिया, करमाहे, ब्रहम्पुरिया, सिहोगिया आदि.
3. वसिष्ठ - कस्तुआर, दरवलिया और मरजाणीमिश्र.
4. कश्यप - जैथरिया, किनवर, नोंहुलिया, बरुआर, दानस्वर कुधुनिया, ततीहा, कोल्हा, करेमुआ, भूपाली, जिझौतिया, त्रिफला पांडेय, सहस्नामे, दिक्षित, बबनडीहा, मौआर और धौलोनी आदि.
5. भार्गव - भ्रीगू, कोठा भारद्वाज, आस्वारीय, भार्गव, कश्यप.
6. भारद्वाज - दुमटिकर, जथारवर, हेरापुरीपांडेय, बेलौंची, आम्बरीया, चकवार, सोन्पखरिया, मचैयापांडेय, मनाछीया, सोनेवार, सीईनी.
7. कत्त्यायण - वद्रकामिश्र, लम्गोदीवातेवारी, श्रीकंतपुरपांडेय.
8. कौशिक - कुसौन्झीया, नेकतीवार, पांडेयटेकर.
9. वत्स – दोनवार , सोन्भादरीया, गानामिश्र, बगोउचीया, जलेवर, समसेरिया, हथौरीया, गंगतिकई.
10. सवर्ण - पन्चोभे, सोबरणीय, बेमुआर, टीकरापांडेय.
11. गर्ग - शुक्ला, बसमैत, नाग्वाशुक्ला और गर्ग.
12. सांकृत - सकरवार, म्लाओंपांडेय, फतुहावाद्यमिश्र
13. पराशर - एकसरिया, सहादौलिया, सुरगामे और हस्तागामे.
14. कपिल - कपिल.
15. उपमन्यु - उपमन्यु.
16. आगस्त - आगस्त.
17. कौन्डिल्य - अथर्व, बिजुलपुरिया.
18. विष्णुवृद्धि - कुठावैत
भूमिहार ब्राह्मणों को कहाँ किस नाम से जाना जाता हैं:
• भूमिहार - बिहार, झारखंड एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश
• त्यागी - पश्चिम उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा
• गालव - मध्य प्रदेश एवं आगरा
• चितपावन और देशस्थ - महाराष्ट्र
• नियोगी - आंध्र प्रदेश
• मोहियाल - हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा जम्मु में
• पुष्कर्ण - राजस्थान
• सारस्वत - हरियाणा
• बारिन्द्रो - पश्चिम बंगाल
• हलवा - उड़ीसा
• कौल - कश्मीर
• अनाविल - गुजरात
• अय्यर, आयंगार - तमिलनाडु
• नम्बूदरीपाद - केरला
• हब्यक - कर्नाटक